प्रेमचंद की कहानियाँ





साराांश

इस कहानी में दो पंडितों, पंडित ड ं तामडि और पंडित मोटे राम, की हास्य-व्यंग्य क साथ प्रडतस्पर्ाा को दर्ाा या गया है । दोनों पंडित रानी क सामने अपनी डिद्वत्ता े े और ज्ञान प्रदडर्ात करने की कोडर्र् कर रहे हैं , जो उनक अहं कार और आपसी े प्रडतस्पर्ाा को उजागर करता है । पंडित मोटे राम र्ास्त्री एक तुर और ालाक व्यक्ति हैं , जो अपने स्वाथा और लाल को पूरा करने क डलए हास्य और व्यंग्य का सहारा लेते हैं । िे अपनी डिद्वत्ता े का ढोंग करते हुए पररिार क सदस्यों को र्ाडमल करते हैं और पूरे घर क डलए े े भोजन पाने की योजना बनाते हैं । उनकी पत्नी सोना भी इस योजना में र्ाडमल हो जाती है । कहानी में मोटे राम का लाल और ालाकी तो है , लेडकन इसमें हास्य का पुट भी है । पाठक को यह महसूस होता है डक मोटे राम ने अपने पररिार क सदस्यों क े े नाम बदलकर डनमंत्रि में जाने की योजना बनाई थी। पंडित ड ंतामडि को जब कछ संदेह होता है , तो िे फकराम से सच्चाई जानने की कोडर्र् करते हैं , डजससे ु ें ू मोटे राम को और भी परे र्ानी होती है । अंत में , जब उनका छोटा बेटा फकरराम ें ू सारी सच्चाई बताने िाला होता है , तो यह और भी मजे दार हो जाता है । पंडित मोटे राम अपनी ालाकी और स्वाथा में अपने डमत्र पंडित ड ंतामडि को डनमंत्रि से बाहर रखने की कोडर्र् करते हैं । इस पूरे घटनाक्रम में हास्य और व्यं ग्य है , क्ोंडक मोटे राम अपनी योजना को सफल बनाने क डलए लगातार झूठ बोलते हैं , यहााँ तक डक अपने पररिार को भी े इसमें र्ाडमल करते हैं । उनक डमत्र ड ंतामडि उनकी इस ालाकी से आहत होते े हैं , परं तु डफर भी कतूहलिर् सच्चाई जानने का प्रयास करते हैं । ु

साराांश

कह दे ते डक तुम हो। रात को नींद हराम कर दी।

मोटे राम ने हाँ सते हुए कहा, 'क्ा कर भाभी, अब इस समय ही फरसत डमली है ।" ाँ ु ड ंतामडि जो अभी तक ुप ाप बैठे थे, बोले, 'क्ों डमत्र, इस बेला कसे पर्ारे ? ै सब कर्ल तो है ?" ु मोटे राम ने डझझकते हुए कहा, "कर्ल है , पर डबना तुम्हारे मजा नहीं आ रहा था। ु रानी साहब क यहााँ अमृत जैसा भोजन परोसा जा रहा है । तुमसे डबना खाया नहीं े जा रहा था, इसडलए दौडा ला आया। लो, अब और डिलंब मत करो।" ड ंतामडि का े हरा क्तखल उठा, "तुम भी क्ा याद करोगे , मोटे राम। यह तो बंर्ुता डनभाई है । मैं तो मान बैठा था डक तु म मुझे भूले-भटक हो।" े दोनों हाँ सते हुए उठ खडे हुए और रानी क महल में पहुाँ े। रानी ने ड ंतामडि का े परर य जाना तो उसने बताया डक िह मोटे राम का गु रु है । यह बात मोटे राम को अच्छी नहीं लगी। रानी ने दोनों को भोजन करने की प्राथाना की। भोजन करने में जब दोनों में प्रडतस्पर्ाा की बातें होने लगी तब रानी आ गयी, ड ंतामडि सािर्ान हो गये और रामायि की ौपाइयों का पाठ करने लगे। मोटे राम भी रानी क सामने े डिद्वत्ता प्रकट करने क डलए व्याकल हो गये और राम नाम का जप करने लगे। े ु इतने में भंिारी ने कहा , 'महाराज, अब भोग लगाइये। भोग की तैयारी हुई और आरती की गई। रानी क समीप जाने का यह अिसर उनक हाथ से डनकल गया। े े पर यह डकसे मालू म था डक डिडर्-िाम उर्र कछ और ही कडटल-क्रीडा कर रहा ु ु है । भंिारी क भोजन परोसने क बाद जैसे ही मोटे राम भोजन का कौर मुख में े े िालने लगता है , तो िह कौर पत्थर का हो जाता है । मोटे राम यह दे ख कर उठ खडे होते हैं । िह पत्थर भी हिा में उडने लगता है । आगे -आगे मोटे राम पीछे पीछे पत्थर। मोटे राम पत्थर से पीछा छटने क डलए भागने लगते हैं । बहुत दू र डनकल जाने पर ू े मोटे राम हााँ फते-हााँ फते एक स्थान पर बैठ जाते हैं । इस दृश्य से ऐसा लगता है डक

कह दे ते डक तुम हो। रात को नींद हराम कर दी।

एक डिर्ाल गैंिा ूहा बन गया हो। पत्थर आकार् में एक स्थान पर क्तस्थर हो जाता

है और तभी आकार्िािी होती है डक, तुम्हारा पीछा मैं तब छोिाँू गा जब रानी क े सामने सत्य बोलोगे। िह यह सुनकर तुरंत रानी क पास जाता है पर िहााँ रानी को े न पाकर एक दे िी को दे खता है । दे िी कहती है डक मैं ही रानी क रप में अन्नपूिाा दे िी हाँ । तुमने अपने स्वाथा और े लाल पूरा करने क डलए छल और कपट का आश्रय डलया और डमत्र से भी असत्य े िादन डकया। डिद्वत्ता का डदखािा करक दू सरों को मू खा बनाना ाहा इसडलए यह े भोज पत्थर बन गया। मोटे राम को अपनी भूल पर पश्चाताप होता है और िह दे िी से क्षमा मााँ गते हैं । दे िी उन्हें क्षमा कर दे ती हैं । मोटे राम दे िी से कहते हैं डक, दे िी इससे पहले की मेरा उदर बाहर डनकल आये और मैं कोई डिड त्र प्रािी लगने लगूाँ , कपया हमारे भोजन की व्यिस्था कर ृ दीडजए। सब हॅ सने लगते हैं और डमलकर भोजन का आनंद उठाते हैं । --------------------------------------------------------------------------- असली कहानी का QR कोड-

एक डिर्ाल गैंिा ूहा बन गया हो। पत्थर आकार् में एक स्थान पर क्तस्थर हो जाता

नैतिक मूल्य

सत्यिा का महत्व: कहानी यह ससखाती है कक व्यक्ति को हमेशा सच बोलना चाकहए। सत्य को स्वीकार करने से ही व्यक्ति की प्रसतष्ठा बनी रहती है । स्वार्थ और लालच का दष्पररणाम: मोटे राम का स्वार्थ और लालच उसे गलत रास्ते ु पर ले जाते हैं । यह दशाथता है कक स्वार्ी व्यवहार न कवल खुद क सलए, बल्कक े े दसरों क सलए भी हासनकारक होता है । े ू तमत्रिा का मूल्य: कहानी में पांकडत सचांतामल्ि और पांकडत मोटे राम क बीच समत्रता े का महत्वपूिथ स्र्ान है । यह कदखाता है कक एक सच्चा समत्र अपने समत्र क प्रसत े सच्चाई और ईमानदारी की अपेक्षा करता है । ववत्तीय साक्षरिा लालच से बचें: जकदी पैसे कमाने क लालच में आकर गलत सनवेश करने से बचें। े हमेशा दीर्थकासलक लाभ क सलए अनुसांधान और क्तवश्लेषि क बाद ही सनवेश करें । े े व्यविगि ववत्त का प्रबंधन: अपने खचों और आय का सही तरीक से प्रबांधन करना े आवश्यक है । बजट बनाना और अप्रत्यासशत खचों क सलए बचत करना चाकहए े ताकक आप आसर्थक सांकट से बच सक। ें साक्षरिा और तिक्षा: क्तवत्तीय साक्षरता को बढाना आवश्यक है । क्तवत्तीय क्तवषयों की जानकारी होना, जैसे कक सनवेश, ऋि, क्तबमा, और टै क्स, आपको बेहतर सनिथय लेने में मदद करता है ।

नैतिक मूल्य

प्रस्तुतीकरि माध्यम

“नाटक” क्तवद्यालय- कदकली पल्ललक स्कल,सेक्टर-45 ू प्रधानाचायाथ- अकदसत समश्रा सशल्क्षका- कमलेश कमारी ु समूह-1(8-B) जाह्नवी वसशष्ठ मेहुल जैन मनस्वी सक्सेना रोहन ससांर्वी तान्या इल्ममकडसेट्टी

प्रस्तुतीकरि माध्यम


साराांश

चन्द्रप्रकाश एक शशक्षित युवक है जो नौकरी न शिलने क कारण ववत्तीय े कठिनाइयों का सािना कर रहा है । वह िाकर साहब क बेटे को ट्यूशन ु े दे कर गुजारा करता है और उनक घर िें ठकराए पर रहता है । िाकर े ु पररवार उसे अपने पररवार का ठहस्सा िानता है और उसक साथ हर े िहत्वपूणण शनणणय िें परािशण करता है । िाकर साहब उस पर शादी की ु सारी क्षजम्िेंदारी डाल दे ते हैं । एक ठदन, िाकर साहब क बेटे की शादी क ु े े शलए लाए गए गहनों को दे खकर चन्द्रप्रकाश क िन िें लालच उत्पन्द्न हो े जाता है । वह अपनी पत्नी चम्पा क शलए भी गहने खरीदने की सोचता है , े लेठकन आशथणक तांगी क कारण वह खरीद नहीां पाता है , अत: वह ये गहने े चुराने की योजना बना लेता है । चोरी करने क बाद जब यह सबक सािने आती है , तो वह दोष नौकरों पर े े डालने की कोशशश करता है , लेठकन सफल नहीां होता। उसे अपने ठकए पर पछतावा होने लगता है और घर छोड़ने का फसला करता है । इस दौरान, ै उसकी पत्नी चम्पा को गहने चोर क बारे िें पता चलने पर भी चुप रहती े है , लेठकन अांदर से दखी और नाराज होती है । कछ सिय बाद चन्द्रप्रकाश ु ु को िाकर साहब की िदद से एक अच्छी नौकरी भी शिल जाती है । ु नौकरी पाने क बाद, उसे अपनी गलती का अहसास होता है और वह िाकर े ु साहब को धोखा दे ने पर शशििंदगी िहसूस करता है । चन्द्रप्रकाश को अपने ठकए पर पछतावा तो होता है , लेठकन वह गहनों को वापस करने का साहस नहीां जुटा पाता। नौकरी शिलने और जीवन सुधरने क बाद भी वह अांदर से े

साराांश

बेचैन रहता है । उसकी पत्नी चम्पा की शनराशा और उसक तांज उसे और भी

े अपराधी िहसूस कराते हैं । धीरे -धीरे यह अपराधबोध उसक व्यवहार और े िानशसक क्षस्थशत को प्रभाववत करने लगता है । एक ठदन, चम्पा गहनों क बारे िें खुलकर बात करती है । वह कहती है , े "िैंने कभी गहनों की चाह नहीां की, तुम्हारे प्यार और ईिानदारी से बढ़कर िेरे शलए कछ भी नहीां है । जो गहने तुिने चुराए हैं , वे शसफ बोझ हैं , और ु ण िैं उन्द्हें पहनकर कभी खुश नहीां हो पाऊगी।" चम्पा क ये शब्द चन्द्रप्रकाश ँ े को भीतर तक झकझोर दे ते हैं । वह एक बड़ा शनणणय लेता है । एक ठदन वह िाकर साहब से शिलकर अपनी चोरी का सारा सच स्वीकार कर लेता ु है और ििा िाँगता है । यह सुनकर िाकर साहब पहले तो है रान होते हैं , ु लेठकन वे चन्द्रप्रकाश की ईिानदारी से प्रभाववत होते हैं । वे उसे िाफ कर दे ते हैं और कहते हैं , "इां सान गलती करता है , लेठकन उसे सुधारने की ठहम्ित रखना सबसे बड़ी बात है ।" चन्द्रप्रकाश का िन हल्का हो जाता है । वह अब न कवल अपनी पत्नी े चम्पा क प्रशत ईिानदार होता है , बक्षल्क िाकर साहब क पररवार क प्रशत े ु े े भी पूरी तरह से शनष्ठावान रहता है । उसका जीवन अब एक नए शसरे से शुरू होता है , जहाँ वह ईिानदारी और आत्िसम्िान को सबसे ऊपर रखता है । असली कहानी का QR कोड:

बेचैन रहता है । उसकी पत्नी चम्पा की शनराशा और उसक तांज उसे और भी



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