इस कहानी में दो पंडितों, पंडित ड ं तामडि और पंडित मोटे राम, की हास्य-व्यंग्य क साथ प्रडतस्पर्ाा को दर्ाा या गया है । दोनों पंडित रानी क सामने अपनी डिद्वत्ता े े और ज्ञान प्रदडर्ात करने की कोडर्र् कर रहे हैं , जो उनक अहं कार और आपसी े प्रडतस्पर्ाा को उजागर करता है । पंडित मोटे राम र्ास्त्री एक तुर और ालाक व्यक्ति हैं , जो अपने स्वाथा और लाल को पूरा करने क डलए हास्य और व्यंग्य का सहारा लेते हैं । िे अपनी डिद्वत्ता े का ढोंग करते हुए पररिार क सदस्यों को र्ाडमल करते हैं और पूरे घर क डलए े े भोजन पाने की योजना बनाते हैं । उनकी पत्नी सोना भी इस योजना में र्ाडमल हो जाती है । कहानी में मोटे राम का लाल और ालाकी तो है , लेडकन इसमें हास्य का पुट भी है । पाठक को यह महसूस होता है डक मोटे राम ने अपने पररिार क सदस्यों क े े नाम बदलकर डनमंत्रि में जाने की योजना बनाई थी। पंडित ड ंतामडि को जब कछ संदेह होता है , तो िे फकराम से सच्चाई जानने की कोडर्र् करते हैं , डजससे ु ें ू मोटे राम को और भी परे र्ानी होती है । अंत में , जब उनका छोटा बेटा फकरराम ें ू सारी सच्चाई बताने िाला होता है , तो यह और भी मजे दार हो जाता है । पंडित मोटे राम अपनी ालाकी और स्वाथा में अपने डमत्र पंडित ड ंतामडि को डनमंत्रि से बाहर रखने की कोडर्र् करते हैं । इस पूरे घटनाक्रम में हास्य और व्यं ग्य है , क्ोंडक मोटे राम अपनी योजना को सफल बनाने क डलए लगातार झूठ बोलते हैं , यहााँ तक डक अपने पररिार को भी े इसमें र्ाडमल करते हैं । उनक डमत्र ड ंतामडि उनकी इस ालाकी से आहत होते े हैं , परं तु डफर भी कतूहलिर् सच्चाई जानने का प्रयास करते हैं । ु
मोटे राम ने हाँ सते हुए कहा, 'क्ा कर भाभी, अब इस समय ही फरसत डमली है ।" ाँ ु ड ंतामडि जो अभी तक ुप ाप बैठे थे, बोले, 'क्ों डमत्र, इस बेला कसे पर्ारे ? ै सब कर्ल तो है ?" ु मोटे राम ने डझझकते हुए कहा, "कर्ल है , पर डबना तुम्हारे मजा नहीं आ रहा था। ु रानी साहब क यहााँ अमृत जैसा भोजन परोसा जा रहा है । तुमसे डबना खाया नहीं े जा रहा था, इसडलए दौडा ला आया। लो, अब और डिलंब मत करो।" ड ंतामडि का े हरा क्तखल उठा, "तुम भी क्ा याद करोगे , मोटे राम। यह तो बंर्ुता डनभाई है । मैं तो मान बैठा था डक तु म मुझे भूले-भटक हो।" े दोनों हाँ सते हुए उठ खडे हुए और रानी क महल में पहुाँ े। रानी ने ड ंतामडि का े परर य जाना तो उसने बताया डक िह मोटे राम का गु रु है । यह बात मोटे राम को अच्छी नहीं लगी। रानी ने दोनों को भोजन करने की प्राथाना की। भोजन करने में जब दोनों में प्रडतस्पर्ाा की बातें होने लगी तब रानी आ गयी, ड ंतामडि सािर्ान हो गये और रामायि की ौपाइयों का पाठ करने लगे। मोटे राम भी रानी क सामने े डिद्वत्ता प्रकट करने क डलए व्याकल हो गये और राम नाम का जप करने लगे। े ु इतने में भंिारी ने कहा , 'महाराज, अब भोग लगाइये। भोग की तैयारी हुई और आरती की गई। रानी क समीप जाने का यह अिसर उनक हाथ से डनकल गया। े े पर यह डकसे मालू म था डक डिडर्-िाम उर्र कछ और ही कडटल-क्रीडा कर रहा ु ु है । भंिारी क भोजन परोसने क बाद जैसे ही मोटे राम भोजन का कौर मुख में े े िालने लगता है , तो िह कौर पत्थर का हो जाता है । मोटे राम यह दे ख कर उठ खडे होते हैं । िह पत्थर भी हिा में उडने लगता है । आगे -आगे मोटे राम पीछे पीछे पत्थर। मोटे राम पत्थर से पीछा छटने क डलए भागने लगते हैं । बहुत दू र डनकल जाने पर ू े मोटे राम हााँ फते-हााँ फते एक स्थान पर बैठ जाते हैं । इस दृश्य से ऐसा लगता है डक
है और तभी आकार्िािी होती है डक, तुम्हारा पीछा मैं तब छोिाँू गा जब रानी क े सामने सत्य बोलोगे। िह यह सुनकर तुरंत रानी क पास जाता है पर िहााँ रानी को े न पाकर एक दे िी को दे खता है । दे िी कहती है डक मैं ही रानी क रप में अन्नपूिाा दे िी हाँ । तुमने अपने स्वाथा और े लाल पूरा करने क डलए छल और कपट का आश्रय डलया और डमत्र से भी असत्य े िादन डकया। डिद्वत्ता का डदखािा करक दू सरों को मू खा बनाना ाहा इसडलए यह े भोज पत्थर बन गया। मोटे राम को अपनी भूल पर पश्चाताप होता है और िह दे िी से क्षमा मााँ गते हैं । दे िी उन्हें क्षमा कर दे ती हैं । मोटे राम दे िी से कहते हैं डक, दे िी इससे पहले की मेरा उदर बाहर डनकल आये और मैं कोई डिड त्र प्रािी लगने लगूाँ , कपया हमारे भोजन की व्यिस्था कर ृ दीडजए। सब हॅ सने लगते हैं और डमलकर भोजन का आनंद उठाते हैं । --------------------------------------------------------------------------- असली कहानी का QR कोड-
सत्यिा का महत्व: कहानी यह ससखाती है कक व्यक्ति को हमेशा सच बोलना चाकहए। सत्य को स्वीकार करने से ही व्यक्ति की प्रसतष्ठा बनी रहती है । स्वार्थ और लालच का दष्पररणाम: मोटे राम का स्वार्थ और लालच उसे गलत रास्ते ु पर ले जाते हैं । यह दशाथता है कक स्वार्ी व्यवहार न कवल खुद क सलए, बल्कक े े दसरों क सलए भी हासनकारक होता है । े ू तमत्रिा का मूल्य: कहानी में पांकडत सचांतामल्ि और पांकडत मोटे राम क बीच समत्रता े का महत्वपूिथ स्र्ान है । यह कदखाता है कक एक सच्चा समत्र अपने समत्र क प्रसत े सच्चाई और ईमानदारी की अपेक्षा करता है । ववत्तीय साक्षरिा लालच से बचें: जकदी पैसे कमाने क लालच में आकर गलत सनवेश करने से बचें। े हमेशा दीर्थकासलक लाभ क सलए अनुसांधान और क्तवश्लेषि क बाद ही सनवेश करें । े े व्यविगि ववत्त का प्रबंधन: अपने खचों और आय का सही तरीक से प्रबांधन करना े आवश्यक है । बजट बनाना और अप्रत्यासशत खचों क सलए बचत करना चाकहए े ताकक आप आसर्थक सांकट से बच सक। ें साक्षरिा और तिक्षा: क्तवत्तीय साक्षरता को बढाना आवश्यक है । क्तवत्तीय क्तवषयों की जानकारी होना, जैसे कक सनवेश, ऋि, क्तबमा, और टै क्स, आपको बेहतर सनिथय लेने में मदद करता है ।
“नाटक” क्तवद्यालय- कदकली पल्ललक स्कल,सेक्टर-45 ू प्रधानाचायाथ- अकदसत समश्रा सशल्क्षका- कमलेश कमारी ु समूह-1(8-B) जाह्नवी वसशष्ठ मेहुल जैन मनस्वी सक्सेना रोहन ससांर्वी तान्या इल्ममकडसेट्टी
चन्द्रप्रकाश एक शशक्षित युवक है जो नौकरी न शिलने क कारण ववत्तीय े कठिनाइयों का सािना कर रहा है । वह िाकर साहब क बेटे को ट्यूशन ु े दे कर गुजारा करता है और उनक घर िें ठकराए पर रहता है । िाकर े ु पररवार उसे अपने पररवार का ठहस्सा िानता है और उसक साथ हर े िहत्वपूणण शनणणय िें परािशण करता है । िाकर साहब उस पर शादी की ु सारी क्षजम्िेंदारी डाल दे ते हैं । एक ठदन, िाकर साहब क बेटे की शादी क ु े े शलए लाए गए गहनों को दे खकर चन्द्रप्रकाश क िन िें लालच उत्पन्द्न हो े जाता है । वह अपनी पत्नी चम्पा क शलए भी गहने खरीदने की सोचता है , े लेठकन आशथणक तांगी क कारण वह खरीद नहीां पाता है , अत: वह ये गहने े चुराने की योजना बना लेता है । चोरी करने क बाद जब यह सबक सािने आती है , तो वह दोष नौकरों पर े े डालने की कोशशश करता है , लेठकन सफल नहीां होता। उसे अपने ठकए पर पछतावा होने लगता है और घर छोड़ने का फसला करता है । इस दौरान, ै उसकी पत्नी चम्पा को गहने चोर क बारे िें पता चलने पर भी चुप रहती े है , लेठकन अांदर से दखी और नाराज होती है । कछ सिय बाद चन्द्रप्रकाश ु ु को िाकर साहब की िदद से एक अच्छी नौकरी भी शिल जाती है । ु नौकरी पाने क बाद, उसे अपनी गलती का अहसास होता है और वह िाकर े ु साहब को धोखा दे ने पर शशििंदगी िहसूस करता है । चन्द्रप्रकाश को अपने ठकए पर पछतावा तो होता है , लेठकन वह गहनों को वापस करने का साहस नहीां जुटा पाता। नौकरी शिलने और जीवन सुधरने क बाद भी वह अांदर से े
े अपराधी िहसूस कराते हैं । धीरे -धीरे यह अपराधबोध उसक व्यवहार और े िानशसक क्षस्थशत को प्रभाववत करने लगता है । एक ठदन, चम्पा गहनों क बारे िें खुलकर बात करती है । वह कहती है , े "िैंने कभी गहनों की चाह नहीां की, तुम्हारे प्यार और ईिानदारी से बढ़कर िेरे शलए कछ भी नहीां है । जो गहने तुिने चुराए हैं , वे शसफ बोझ हैं , और ु ण िैं उन्द्हें पहनकर कभी खुश नहीां हो पाऊगी।" चम्पा क ये शब्द चन्द्रप्रकाश ँ े को भीतर तक झकझोर दे ते हैं । वह एक बड़ा शनणणय लेता है । एक ठदन वह िाकर साहब से शिलकर अपनी चोरी का सारा सच स्वीकार कर लेता ु है और ििा िाँगता है । यह सुनकर िाकर साहब पहले तो है रान होते हैं , ु लेठकन वे चन्द्रप्रकाश की ईिानदारी से प्रभाववत होते हैं । वे उसे िाफ कर दे ते हैं और कहते हैं , "इां सान गलती करता है , लेठकन उसे सुधारने की ठहम्ित रखना सबसे बड़ी बात है ।" चन्द्रप्रकाश का िन हल्का हो जाता है । वह अब न कवल अपनी पत्नी े चम्पा क प्रशत ईिानदार होता है , बक्षल्क िाकर साहब क पररवार क प्रशत े ु े े भी पूरी तरह से शनष्ठावान रहता है । उसका जीवन अब एक नए शसरे से शुरू होता है , जहाँ वह ईिानदारी और आत्िसम्िान को सबसे ऊपर रखता है । असली कहानी का QR कोड:
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